दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन्ह उबारा॥ धरा रूप नरसिंह को अंबा।
2.
धरा रूप नरसिंह को अम्बा ।
3.
बस! धरा रूप उसने भी एक बलशाली मोर का, जा पँहुचा उसके समक्ष उसी डाली पर ।
4.
कूड़ा करकट रहा सटकता, चुगे न मोती हंसा ने करी जतन से जर्जर तन की लीपापोती हंसा ने पहुँच मसख़रों के मेले में धरा रूप बाजीगर का पड़ा गाल पर तभी तमाचा, साँसों के सौदागर का हंसा के जड़वत् जीवन को चेतन चाँटा बदल गया तुलने को तैयार हुआ तो पल में काँटा बदल गया
5.
जग की जननी है नारी विषम परिवेश में नहीं हारी काली का धरा रूप, जब संतान पे पड़ी विपदा भारी सह लेती काटों का दर्द पर हरा देता एक मर्द क्यूँ रूह तक कांप जाती अन्याय के खिलाफ आवाज नहीं उठाती ममता की ऐसी मूरत पी कर दर्द हंसती सूरत छलनी हो रहे आत्मा के तार चित्कारता ह्रदय करे पुकार आज नारी के अस्तित्व का सवाल परिवर्तन के नाम उठा बबाल वक़्त की है पुकार नारी को भी मिले उसके अधिकार कर्मण्यता, सहिष्णु, उदारचेता है उसकी पहचान स्वत्व से मिला सम्मान.